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Saturday, 2 December 2017

HISTORY OF ZALA RAJVANSH | झाला वंश की उत्त्पति से लेकर हरपालदेवजी तक का इतिहास।

जय माताजी

झाला राजवंश ⇛  एसा माना जाता है की ब्रह्माजी के चार पुत्र थे  भृगु,अंगीरा,मरीचि,अत्री।भृगु ऋषि के पुत्र विधाता हुए,विधाता के पुत्र मृकुंड हुए और मृकुंड के पुत्र मार्कंडेय हुए। उस समय बद्रिनारायण के क्षेत्र में अनेक ऋषि के आश्रम हुवा करते थे। ऋषि के यज्ञ को भंग करने वाले राक्षसों का आतंक खूब बढ़ गया था,राक्षसों के संहार करने के लिए मार्कंडेय ऋषि ने आपने यज्ञ बल से एक वीर पुरुष उत्पन्न किया।                                                               
                        ऋषि मार्कंडेय द्वारा वीर पुरुष का अग्नि में से उत्पन करना

उस वीर पुरुष का नाम कुंडमाल दिया।जो फिर मखवान शाखा के महावीर प्रसिद्ध हुए "मख"यानी यज्ञ का कुंड "मखवान" यानी यज्ञ से उत्पन हुवा परुष।
उस समय चंड और चंडाक्ष नाम के दो राक्षस को देवी वरदान प्राप्त थे की 'वो दोनों ही एक दूसरे को मार सकते  थे'।कुंडमालजी ने भी भगवान शिवजी की तपस्या कर अनेक देवी शस्त्र प्राप्त किये और अनेक राक्षसों का वध किया। कुंडमाल जी ने उस देवी शास्त्र का प्रयोग चंड और चंडाक्ष के विरुद्ध किया जिस से एक मोहिनी उत्पन हुई और उस मोहिनी को पाने की लालच में दोनों रक्षसो के बिच लड़ाई हो गई और दोनों ने एक दुसरे को मारडाला।
कुंडमालजी ने उस क्षेत्र में चमत्कारपुर नामक राज्य की स्थापना की और उनकी तिन पीढियो ने वह शासन किया। फिर राजा कुंत ने हिमालय की तलेटी में कुंतलपुर नामक राज्य की स्थापना की।
राजा कुंत के ३३२ वे वंशज राजा अमृतसेन जी हुए राजा अमृतसेन जी के पाच पुत्र थे। चाचकदेवजी,वाचकदेवजी,शिवराजजी,वत्सराज, जो यादवो के भांजे थे और पाचवे पुत्र मालदेवजी हस्तिनापुर के भांजे थे ।
एक बार वो पाचो भाई शेर के शिकार के लिए गए वहा उन पाचो के बिच लड़ाई हो गई और मालदेवजी वहा से रूठ कर हस्तिनापुर चले गए और वहा से सेना लाके चाचकदेव जी पे आक्रमण कर दिया चाचकदेव जी युद्ध में हार गए और वहा से निकल कर फतेहपुरशिक्री चले गए वहा अपनी राजसत्ता की स्थापना की।
उनके ७२ वे वंशज शिक्री की सत्ता पे आये उन्होंने सिंध के किर्तिगढ़ राज्य को जित लिया और वहा प्रजा की सुखकारी के लिए अनेक कार्य किये।
उनके ५० साल बाद श्री केशरदेवजी विक्रमसवंत ११०५ में किर्तिगढ़ की सत्ता पे आए। केशरदेवजी हमीरसुमरा के विरुद्ध हुए युद्ध में अपने ७ पुत्र के साथ शहीद हुए।उनके आठवे पुत्र हरपाल देवजी वहा से बच के  गुजरात की और निकल गए।उस समय गुजरात में करनदेव सोलंकी का शाशन था। करण देव के कुटुंब के प्रतापसिंह सोलंकी की पुत्री बिसंतीदेवी (शक्तिदेवी) से हरपालदेवजी का  विवाह हुवा। करणदेव सोलंकी की रानी को बाबराभुत बहुत ही परेशान कर रहा था,बाबरा के आतंक से रानी को छुड़ा ने का बीड़ा हरपालदेवजी ने स्वीकार किया।हरपालदेवजी ने अपने बाहुबल से अपने वश में किया,हरपालदेवजी के इस कार्य से राजा करणदेवजी प्रसन्न हो गए और हरपालदेवजी को वचन दिया की एक रात में वो जितने गाव को तोरण बांधेगे उतने गाव उनको दे दिई जाएंगे। हरपालदेव,शक्तिमाता और बाबराभुत ने मिलके २३०० गॉव को तोरण बांधे।पहला तोरण पटडी गाव को बंधा,टूवा में विश्राम किया और आखरी तोरण दिघडीया गाव को बाँधा और सुबह हो गइ ।
                                  ●  आखरी तोरण  दिघडीया को बांधा और सुबह हो गई  ●

इस तरह हरपालदेवजी,शक्ति माता और बाबर भुत ने मिलके २३०० गॉव को तोरण बांधे जिन में से ५०० गॉव रानी कफुलंदा को दे दिए और इस तरह विक्रमसावंत ११५६ में १८०० गॉव वाले विशाल साम्राज्य की स्थापना की। अपनी राजधानी पाटडी रखी।हरपालदेवजी और शक्तीमा के तिन पुत्र हुए सोढाजी,मंगुजी,शेखाराजी,और एक पुत्री हुई उमादेवि ।
                                                     थोड़े दिन बाद जब शक्ति माता के तीनो कुंवर और एक चारण का बालक जब खेल रहे थे तब गजशाला से एक भड़का हुवा हाथी उनकी और दोडा आ रहथा,तभी इ सब शक्ति माता ने देखा और महल के जरुखे उन तीनो राजकुमारों को हठ से उठा कर अपने पास ले लिया और उस चारण के बालक को टापरी मार कर एक ओर करदिया इस घटना के बाद हरपालदेवजी के वशज झाला कहला ने लगे और उस चारण के वंशज टपरिया चरण कहला ने लगे
                                इस घटना से शक्तिदेवी का दैवी स्वरुप सब के सामने उजागर हुवा उनके वचन के अनुसार अगर कोई उनकी वास्तविकता जान लेगा तो वो समाधी ले लेंगी इस लिए उन्हों ने पाटडी से थोड़ी दूर धामा में समाधी ले ली,धामा में आज भी चेत्र वद तेरस के दिन हवन और पूजा होती है
                                शक्ति माता की समाधी के बाद हरपालदेवजी  ने सोढा कुल की कुंवरी राजकुंवर बाई से विवाह कर लिया। विक्रम सवंत ११८६ में हरपालदेवजी का स्वर्गवास हुवा।हरपालदेवजी के बाद उनके पुत्र सोढाजी उनकी राजगद्दी पे आए और मांगुजी को गढ़जांबू के ८४ गॉव,शेखराजी को वड़ोदरा के ८४ गॉव दिए गए

 झाला वंश की उत्त्पति से लेकर मानसिंह झाला तक का इतिहास
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https://www.youtube.com/watch?v=kyIyNN3nNw8&t=50s

जय माताजी 

जय राजपुताना 





3 comments:

  1. Muje ak confusion hai ki abhi tak Jhala Rajput Suryavansh kahete hai apne aap ko to muje yai janana hai ki surya to Marichi rishi k Putra kashyap k Putra the or unke vansh me jo aata hai wahi Suryavansh kahesakta hai yani ki jiska gotra kashyap ho kyuki Markandey to Brahma k 10 rishi kiye the utpan unmese saptrushi k bad 8th number par Bhrugu rishi or unke vidhata or unke mrukund or unke markandey huve to unke vansh me surya aata hi nahi fir kaise huve Jhala suryavanshi???
    9898253998 isme call karke bata sakte hai muje janana hai possible hai to call karke batadijiyega.

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  2. Muje yai bataiye ki brahma k 7 Putra the pahela sapta rishi or aapne bataya 4 hi or dusri bat yai hai ki kaha likha hai ki markand rishi ne yagna kiya or yai kundmalji ne mohini ho utpan karke chand or chandaksh ko karvaya agar mohini sehi karva na tha to Markandey mohini ko hi bhejte direct kundlamlji ko kyu utpan karte yai bhi logic hena me is histroy ka virodh nahi karta kyuki me bhi jab chota the tab se yahi sunke aaraha hu bas muje confusion door karna hai kyuki koi tv serial me chand or chandaksh ko Markandey dvara utpan kiye kundmalji dvara vadh nahi dikhate to muje tjoda details me bataiye konsa sahi proof hai jis se ham recognize karpaye ki yahi sahi hai...
    Mera number hai 9898253998 kabhi bhi call karke bata sakte hai nai history me bahot interested hu

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  3. यह जो confusion की बाते कर रहे है उन्होंने यह इतिहास ऊपर जो लिखा हुआ है वो शायद ठीक से पढ़ा नहीं है |
    यहाँ साफ साफ लिखा है ऋषि मार्कण्डेये जी नें सूर्ययज्ञ से उत्पन्न वंश की बात हो रही है तो फिर कंफ्यूज होने ki बात ही कहा है |यहाँ जो यज्ञ हुआ है उसका नाम सूर्ययज्ञ है हलाकि कुछ आपने आपको चंद्रवंशी भी कहते है यह मात्र एक अपवाद है और यह अपवाद सिर्फ इसी बात को लेकर है की जो ऋषि मार्कण्डेये नें jo यज्ञ किया था वो सूर्ययज्ञ था या सोमयज्ञ |

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