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Tuesday, 5 December 2017

HISTORY OF ZALA RAJVANSH part-2|हरपालदेवजी से लेकर मानसिंहझाला(राजराणा मानसिंह) तक का इतिहास

जय माताजी,

झालाराजवंशहरपालदेवजी के स्वर्गवास के बादके जेष्ठ पुत्र सोढाजी को पटडी की सत्ता सोपी गई,उनके भाई मांगुजी को गढ़जाम्बु के ८४ गॉव और शेखराजी को वड़ोदरा के ८४ गॉव दिए गए।सोढाजी के ८वे वंशज राजसांतल जी विक्रमसवंत १३६१ में पाटडी की राजगद्दी पे आए।उन्होंने पालनपुर के पास सांतलपुर नामक शहर का निर्माण कराया। एक बार जब उनके साले लूणकर वाघेला सांतलपुर आए तब उन्होंने झालाओ का मजाकउड़ाया तब राजकुमार मजाक नहीं सह पाए और   लूणकर वाघेला को मार ने के लिए आगे बढे तब उनके पिता ने उनको रोका और लूणकर वाघेला को अपने दरबार से बाहर निकाल दिया। फिर विक्रमसवंत १३८१ में लूणकर वाघेला ने अपनी पूरी सेना लेके उनपे आक्रमण कर दिया इस युद्ध में दो राजकुमार शहीद हुए।
उनके बाद उनके पाटवी कुमार विजयपालजी वि.स.१३८१ में पाटडी की राज गद्दी पे आए।विजयपालजी के ८वे वंशज रणमलजी वि.स.१४४८ पाटडी की सत्ता पे आए।उनका विवाह मारवाड़ के कोटडा हुवा था,वो जब कोटडा गए तब उनके सालो के साथ उनका विवाद हो गया और रणमलजी के सालो ने उनको जैल में केद करलिया,तब उनके युवराज छत्रसालजी और दो राजकुमारो ने मिलके कोटडा पे आक्रमण कर दिया और अपने पिता को छुड़ा लिया।
                                         रणमलजी के बाद छत्रसाल जी को पटडी की सत्ता सोपी गई,उनके भाई सौडसाल जी को २४ गॉवओ और उनके दुसरे भाई वनवीरसिंह जी को २४ गॉव दिए गए। छत्रसालजी अपने १३ पुत्रो के साथ राजधानी वि.स.१४७० में पाटड़ी से माडल ले गए  और पाटडी पे कुमार जैतसिंह को बिठाया। जैतसिंह ने अहमदाबाद के सुल्तान के साथ युद्ध किया और वि.स.१४८२ में अपनी राजगादी पाटडी से कंकावटी ले गए।
छत्रसाल जी के पुत्र राघवदेवजी और उनकर ११ भाई को वाटू में १२० गॉव का गरास मिला,राघव देवजी ने गुजरात में पाटी नामक गॉव का निर्माण कराया और वहा अपनी सत्ता स्थपि और वि.स.१४७६ में बिसंतीदेवी का मंदिर बनवाया और फिर मालवा की और रवाना हो गए वो मांडू के बादशाह होसंग के पास रुके थे। उन्होंने होसंग के साथ अनेक युद्ध  में होसग  की सहायता की होसंग ने खुश होके उनको आगर और अन्य ७ गॉव भेट में दिए।आगर में राघवदेवजी ने केवड़िया भेरव का मंदिर बनाया।राघवदेवजी के पुत्र सोढाजी और सोढाजी के पुत्र रामसिंह ने रायपुर जीता और राघवदेवजी के दुसरे पुत्र कहान सिंह ने मालवा जीता।
                                            इस तरफ  जैतसिंह के पुत्र भीमसिंह कंकावटी की सत्ता पे आए और जैत सिंह के दुसरे पुत्र अज्जाजी को २४ गॉव की सत्ता सोपी।भीमसिंह के पुत्र राजवाघजी वि.स.१५२५ कंकावटी की सत्ता पे आए। राजवाघजी बहुत ही शक्तिशाली और बहादुर थे उन्हों ने जूनागढ़ के अत्याचारी सूबा का विरोध किया और अपनी मुठीभर सेना लेके महम्मद बेगडा से भयानक युद्ध किया। राजवाघ जी अपने ६ पुत्रो के साथ शहीद हुए और ३६० रानियो ने जोहर किया और उनके सातवे पुत्र विरमदेव जी अपने ससुराल में गायो की रक्षा करते हुए राजवाघ जी के ८वे पुत्र रजोधरजी (राइधरजी) वि.स.१५४२ में कंकावटी की सत्ता पे आए उन्हों ने १५४४ में हलवद की स्थापना की
                                           उनके तिन पुत्र थे अज्जाजी,सज्जाजी,और राणाजी,जब रजोधर जी की मृत्यु हुई तब अज्जाजी और सज्जाजी उनके अंतिम संस्कार के लिए गए किन्तु राणाजी नहीं गए और अन्तिमसंस्कार  के लिए गए आपने भाईओ को वापिस महल में प्रवेश नहीं दिया और उनको हलवद से निकल जाने को कहा। अज्जाजी अपने सभी सगे सम्बन्धी के साथ वहासे निकल गए और मेवार पहुचे उन्हों ने मेवार के महाराणा के साथ उनके अनेक युधो में उनकी सहायता की।
 राज राणा अज्जाजी                             
                   
                  जब बाबर और राणा  सांगा के बिच खानवा में युद्ध चल रहा था तब युद्ध करते समय एक तीर राणासांगा के सर में लागा और राणा सांगा मुर्छित हो गए तब राणा सांग की रक्षा करने के लिए अज्जाजी ने राणा सांगा के सरे राज्यचीन धारण कर लिए और युद्ध करते समय राजराणा अज्जाजी शहीद हुए।इस युद्ध में सज्जाजी और अज्जाजी के पुत्र राजसिंह घायल हुए।
                     


                     राणा सांगा के बाद उनके पुत्र ने अज्जाजी के पुत्र राजसिंह जी को सादरी की जागीर दी ।राजसिंह गुजरात के बादशाह के विरुद्ध युद्ध में शहीद हुए
                                                                                                                                                                                                                                      उनके बाद उनके पुत्र असोजी सादरी की सत्ता पे आए तब मेवर पे विक्रमादित्य जी का शाशन था असोजी चितोड के युद्ध में गुजरात के बादशाह के विरुद्ध युद्ध करते  हुए अपना आत्मबलिदान दिया।
                                                                 उनके बाद उनके भाई सुरतानसिंह जी सादरी की सत्ता पे आए वो अकबर के विरुद्ध हुए चितोड के युद्ध में शहीद हुए
                                           उनके बाद उनके पुत्र मानसिंह उनकी जगह सत्ता पे आए उन्होंने महाराणा प्रताप का साथ दिया और जब हल्दीघाटी के युद्ध  में महाराणा प्रताप घायल हुए तब उन्हों ने महाराणा प्रताप के सारे राज्य चिन्ह धारण किये और मुग़ल सेना उनको महाराणा समाज के उनपे तूट पड़ी और मानसिंह जी शहीद हुए।

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                               https://www.youtube.com/watch?v=kyIyNN3nNw8&t=55s

                            जय माताजी 
                       जय जय राजपुताना 









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